परमादरणीय श्री भिडे गुरुजींच्या *मनुस्मृती ही जगातील प्रथम घटना* ह्या उल्लेखावरून त्यांच्यावर तोंडसुख घेणारे पत्रभडवे, प्रेश्यावृत्तीने कार्यकरणारी प्रसारमाध्यमे (प्रेस्टिट्युट्स), त्यांचा द्वेष करणारी समाजमाध्यमांवर व्यक्त होणारी अर्ध्या हळकुंडांत पिवळी झालेली अक्कलशून्य पिलावळ, त्यांचेच वाचून किंवा पाहून भ्रमित झालेली सर्वसामान्य जनता ह्या सर्वांसाठी.👇
*स्वत: महामानव डॉ. आंबेडकरांनीच मनुस्मृतीचा उल्लेख आद्य घटनाकार असाच केलेला आपणांस साहित्यांत आढळतो.* निम्नलिखित सर्व संदर्भ आम्ही त्यांच्या समग्र आंबेडकर हिंदी वाङमयातले दिलेले आहेत, जे भारत सरकारने प्रकाशित केलेले आहे. हे सर्व साहित्य आंतरजालांवर पीडीएफ स्कैन्डही आहे.
*आम्ही प्रथमच सांगु इच्छितो की व्यावहारिक जीवनांत आम्हांस भारतीय राज्यघटना प्रमाण व मान्यच आहे. पण तरीही तिच्या नावाखाली उगाचच मनुला शिव्या देणार्यांसाठी हा लेखन प्रपंच.*
परमादरणीय श्रीगुरुजींच्या नावाने कंठशोष करणार्यांनी आधी आंबेडकरांची मते वाचावीत.👇
*आंबेडकरांनी केलेली मनुस्मृतीची स्तुती*
ते स्वत: मान्य करतात की मनु हा जगातला प्रथम राज्यघटनाकार
१. ‘‘स्मृतियां अनेक हैं, तो भी वे मूलतः एक-दूसरे से भिन्न नहीं हैं।………इनका स्रोत एक ही है। यह स्रोत है ‘मनुस्मृति’ जो ‘मानव धर्मशास्त्र’ के नाम से भी प्रसिद्ध है। अन्य स्मृतियां मनुस्मृति की सटीक पुनरावृत्ती हैं। इसलिए हिन्दुओं के आचार-विचार और धार्मिक संकल्पनाओं के विषय में पर्याप्त अवधारणा के लिए मनुस्मृति का अध्ययन ही यथेष्ट है।’’
(डॉ. अम्बेडकर समग्र हिन्दी वाङ्मय, खण्ड ७, पृ० २२३)
(ख) *‘‘अब हम साहित्य की उस श्रेणी पर आते हैं जो स्मृती कहलाता है। जिसमें से सबसे महत्वपूर्ण मनुस्मृति और याज्ञवल्क्यस्मृति हैं।’’*
(वही, खण्ड ८, पृ० ६५)
(ग) *‘‘मैं निश्चित हुँ कि कोई भी रूढिवादी हिन्दू ऐसा कहने का साहस नहीं कर सकता कि मनुस्मृति हिन्दू धर्म का धर्मग्रन्थ नहीं है।’’*
(वही, खण्ड ६, पृ० १०३)
(घ) *‘‘मनुस्मृति को धर्मग्रन्थ के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए।’’*
(वही, खण्ड ७, पृ० २२८)
*मनुस्मृती हा निर्बंधशास्त्राचाच अर्थात विधीनियमांचाच ग्रंथ - इति डॉ. आंबेडकर*👇👇👇
*(ङ) ‘‘मनुस्मृति कानून का ग्रन्थ है, जिसमें धर्म और सदाचार को एक में मिला दिया गया है। चूंकि इसमें मनुष्य के कर्तव्य की विवेचना है, इसलिए यह आचार शास्त्र का ग्रन्थ है। चूंकि इसमें जाति (वर्ण) का विवेचन है, जो हिन्दू धर्म की आत्मा है, इसलिए यह धर्मग्रन्थ है। चूंकि इसमें कर्तव्य न करने पर दंड की व्यवस्था दी गयी है, इसलिए यह कानून है।’’*
(वही खण्ड ७, पृ. २२६)
अशा प्रकारे मनुस्मृती ही एक *तत्कालीन संविधान आहे, धर्मशास्त्र आहे, आचार शास्त्र आहे. हीच प्राचीन भारतीय साहित्यातली मान्यता आहे.डॉ.आंबेडकरांचे सुद्धा हेच मत होते.*
*मनुस्मृति का रचयिता मनु आदरणीय है*
डॉ.आंबेडकर स्वत: उक्त मनुस्मृतीच्या रचयित्यांस आदरपूर्वक स्मरण करतात.
(क) *‘‘प्राचीन भारतीय इतिहास में मनु आदरसूचक संज्ञा थी।’’*
(वही, खंड ७, पृ० १५१)
(ख) *‘‘याज्ञवल्क्य नामक विद्वान् जो मनु जितना महान् है।’’*
(वही, खंड ७, पृ० १७९)
*आंबेडकर स्वत:च मनुला घटनाकार अर्थात विधीप्रणेता मानतात.*
*मनु हा विधिप्रणेता अर्थात घटनाकारच– डॉ. आंबेडकर*
ते स्वायंभूव मनूंस प्रथम घटनाकार मानतात. कसे ते पाहुयांत.
*(क) ‘‘इससे प्रकट होता है कि केवल मनु ने विधान बनाया। जो स्वायम्भुव मनु था।’’*
(डॉ. अम्बेडकर समग्र हिन्दी वाङ्मय, खण्ड ८, पृ. २८३)
ह्या मनुचे वंश विवरण देताना बाबासाहेबांनी सुदास राजाला इक्ष्वाकुच्या ५० व्या पीढींत मानलंय. इक्ष्वाकु हा सातव्या मनु वैवस्वताचा पुत्र होता आणि वैवस्वत मनु हा स्वायंभुव मनुच्या सुदीर्घ वंशपरपरेतला सातवा मनु आहे.
(संदर्भ - वही खण्ड १३, पृ. १०४, १५२)
*(ख) ‘‘मनु सर्वप्रथम वह व्यक्ति था जिसने उन कर्त्तव्यों को व्यवस्थित और संहिताबद्ध किया, जिन पर आचरण करने के लिए हिन्दू बाध्य थे।’’*
(वही, खण्ड ७, पृ. २२६)
(ग) *‘‘मनुस्मृति कानून का ग्रन्थ है।…..चूकिं इसमें कर्त्तव्य न करने पर दंड की व्यवस्था दी गयी है, इसलिए यह कानून है।’’*
(वही, खण्ड ७, पृ. २२६)
(घ) *‘‘पुराणों में वर्णित प्राचीन परपरा के अनुसार, जितनी अवधि के लिए किसी भी व्यक्ति का वर्ण मनु और सप्तर्षि द्वारा निश्चित किया जाता था, वह चार वर्ष की ही होती थी और उसे युग कहते थे।’’*
(वही, खण्ड ७, पृ. १७०)
(ङ) *‘‘ये नियम मनु, याज्ञवल्क्य, नारद, विष्णु, कात्यायन आदि की स्मृतियों आदि से संकलित किए गए हैं। ये कुछ ऐसे प्रमुख विधि-निर्माता हैं जिन्हें हिन्दू विधि के निर्माण के क्षेत्र में प्रमाण-स्वरूप मानते हैं।’’*
(वही, खण्ड ९, पृ. १०४)
*(च) ‘‘इसे हिन्दुओं के विधि निर्माता मनु ने मान्यता प्रदान की है।’’*
(वही, खण्ड ९, पृ. २६)
तुकाराम चिंचणीकर
पाखण्ड खण्डिणी
Pakhandkhandinee.blogspot.com
#मनुस्मृती_राज्यघटना_श्रीभिडेगुरुजी_डॉ.आंबेडकर_संविधान_सत्य_विपर्यास
या भामट्या चिंचणीकराचे संदर्भ बोगस व विपर्यासीत असतात...अशा मनूच्या विष्ठेतून प्रवलेल्या विचारांबद्दल बोलणे सुद्धा गैर आहे. चिंचणीराच्या अनेक पाखंडी लेखाचे मी खंडन केलेले आहे. याचे करावे अशी लायकी नाही.
ReplyDeleteअरे अरे किती ती चीडचीड !किती तो राग ! उगी उगी हं !कीव येते राव तुमची ! नाचता येईना ढुंगण वाकडं अभी अवस्थाय तुमची ! असो. भूंका !
Deleteअप्रतिम माहिती,,
ReplyDeleteजबरदस्त
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